स्व के तंत्र को जाना है?

आचार्य विनोबा भावे के यहाँ कोई समिति वाले ने आखरी राम राम किये कि “महाराज ! की अब हम आश्रम में से जायेंगे। हमको यहाँ का वातावरण सूट नहीं होता।”

बोले “क्यों?”

बोले "नए संचालक आ गए। उनके कहने के अनुसार थोड़ा थोड़ा बात भी उनके कहने के अनुसार करनी पड़ती है। हम करेंगे ये सेवा ( भूदान यज्ञ की ) लेकिन स्वतंत्र होकर करेंगे।"

विनोबा ने कहा "स्वतंत्र स्व के तंत्र को जाना है? स्व तो आत्मा है उसको तो जाना नहीं है बेटा ! तो मतलब तेरे मन में जैसे आयेगा ऐसी सेवा करेगा। "

तो बोले "हाँ "

"तो मन तो अपना नौकर है। मतलब गुरुभाई की या गुरु के सिद्धांत की बात नहीं मानूंगा। जैसा मेरा नौकर कहेगा ऐसा ही करूँगा यही हुआ तेरा ?"

जैसा मेरा नौकर कहेगा ऐसा करूँगा। शास्त्र कहे, गुरु कहे, गुरुभाई कहे वो नहीं करूँगा जैसा मेरा मन कहे ऐसा करूँगा यही तेरी बात हुई।

उस युवक की थोड़ी बहुत सेवा थी तुरंत लाइट हुई और चरणों पे गिरा कि...  नहीं ये द्वार छोड़ कर कही नहीं जाऊँगा। करूँगा सेवा ।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

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