गुरु का दिया कब पचता है ?

हाथी बाबा से किसी ने पूछा कि भजन करे तो क्या फायदा होगा ? तो रोने लग गए। बोले ‘महाराज मैं कोई बुरा तो नहीं किया ? ‘ बोले  ‘मेरा कौनसा दुर्भाग्य कि जरा जरा बात में क्या लाभ होगा ऐसे बनिये, स्वार्थी टट्टू का दर्शन हुआ सुबह सुबह !! जरा जरा बात में क्या लाभ होगा? क्या लाभ होगा? मेरा मन ख़राब होगा तेरे जैसे व्यक्ति के बीच में मैं रहूँगा तो। ‘ सब काम केवल बाह्य  लाभ देख कर नहीं किये जाते। कोई लाभ की जरूरत ही नहीं है।  मेरा स्वभाव है सत्कर्म करना। नित्य कर्म, नैमित्तिक कर्म तो करता है |,काम्य कर्म तो करता है | लेकिन वो कुछ ऐसा भी समय निकाले कि कोई बाह्य लाभ की जरूरत ही नहीं।

द्रौपदी ने पूछा कि “आप तो संध्या करते, ध्यान करते, घंटो भर बैठे युधिष्ठिर जी !! और हम लोग इतने दुखी है और वो दुष्ट राज्य का मौज लेता है तो क्या भगवान से या अपने आत्मा से आप ये संकल्प नहीं कर सकते कि हम इतने दुखी क्यों है ?” युधिष्ठिर ने कहा कि मैं दुःख मिटने के लिए भजन नहीं कर रहा हूँ। लेकिन भजन करने से सुख मिल रहा है। आनंद मिल रहा है और मेरा कर्त्तव्य है, मेरा स्वभाव है इसलिए मैं भजन कर रहा हूँ। गुरु ने वहां झाडू लगवाएं, बुआरी करवाई। निष्कामता होते होते योग्यता आई तब गुरु ने दिया तो पचा नहीं तो नहीं पचता।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

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