सेवक में इतनी शक्ति होती है कि सेवक अगर अपनी सेवा में विफल होता है, ईमानदारी से सेवा करता है और विफल होता है तो स्वामी परमात्मा फिर उसको सहाय करता है। जहाँ दंड की जरूरत है वहां दंड भेज देता है और जहाँ पुरस्कार की जरूरत है वहां पुरस्कार भेज देता है। सृष्टिकर्ता के ह्रदय में सबका मंगल छुपा है। ऐसे ही सेवक के ह्रदय में सबका मंगल छिपेगा , मंगल छुपा रहेगा तो सृष्टिकर्ता के साथ अपने स्वभाव का तालमेल करके बहुत सुखी और ऊँचाइयों का अनुभव कर सकता है।
पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“
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