बहुत बहुत ऊँची सेवा

शक्ति , संपत्ति और योग्यता होने पर भी जो सेवा नहीं करते वे आलसी प्रमादी है।  सुख-आसक्त है और भाग्यहीन है। जो मनुष्य जन्म पाके सेवा का भाग्य नहीं पाते वे भाग्यहीन है।

किसी के दुःख मिटाने के बदले उसको सुखी करने का पौरुष करने वाला सेवक ज्यादा सफल होता है। और जो सुख देने की भावना से सेवा करता है तो दुःख तो मिटा ही देगा। दुःख मिटाना पर्याप्त नहीं उसे सुखी करना उसे प्रसन्न करना और सच्चे सुख की राह पे लगा देना ये बहुत बहुत ऊँची सेवा है|

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

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