आओ सेवा करें

कुछ लोग सेवा से मुकरने की आदत रखते है। ‘अच्छा ये तू कर ले, अरविन्द हा तू करी ले ,फलाना भाई तू वे कर ले ,अला अतिनै करू तू तया आल्या जाओ तू करू ,करू आ करो , आ करो ‘ऐसे सेवक विफल हो जाते सेवा में।

दो भाई थे। एक बड़ा एक छोटा। दोनों को बराबर संपत्ति मिली।  कुछ वर्षों बाद बड़े भाई ने मुक़दमा कर दिया छोटे भाई पर। न्यायलय में खटला गया।  न्यायाधीश ने केस चलाया और चेम्बूर में बुलाया बड़े भाई को, छोटे भाई को । बोले बड़े तुम कंगाल कैसे रह गए और तुम छोटे इतने अमीर कैसे हो गए ? जब तुम बोलते हो की हमने भले लिखा पढ़ी नहीं की लेकिन आधी आधी संपत्ति मिली थी। तो बराबर की संपत्ति मिलाने पर एक कंगाल और एक अमीर कैसे हो गया ? तो छोटे ने कहा ‘ मेरे बड़े भाई क्या करते थे की जाओ जाओ ये कर लो ! अरे, तेरे को बोला ये कर तूने नहीं किया अभी तक? अरे, ये कर ले , वो कर ले , जाओ जाओ, ये करो, जाओ जाओ तो इनका सब कुछ चला गया और मैं मित्रो से , साथियों से, नौकरों से ,मुनिमों से मिलकर कहता था की ‘आओ ! अपन ये कर लेंगे, आओ ये कर लेंगे, आओ ये कर लेंगे, आओ आओ। । मैंने आओ आओ सूत्र रखा और इसने जाओ जाओ इसीलिए उसका सब कुछ चला गया और मेरे पास सब कुछ आ गया।’


पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

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