निःस्वार्थ सेवा हो सदा

हमेशा के लिए रहना नहीं इस धारे पानी में।
कुछ अच्छा काम कर लो चार दिन की जिंदगानी में।
तन से सेवा करो जगत की मन से प्रभु के हो जाओ।
शुद्ध बुद्धि से तत्वनिष्ठ हो जाओ मुक्त अवस्था को तुम पाओ।

निःस्वार्थ सेवा हो सदा मन मलिन होता स्वार्थ से।
जब तक रहेगा मन मलिन नहीं भेट होगी परमार्थ  से।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

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