सेवा के बदले में नाम न चाहे

सेवा चाहे और सेवा के बदले में नाम चाहे तो सेवा के कर्म में आसक्ति होगी। यश चाहे, पद चाहे एक दूसरे का टाटिया खींचना चाहे और आप बड़ा बनना चाहे तो वे आदमी आध्यात्मिक जगत में विफल होते है और व्यवहारिक जगत में लम्बा समय सुखी नहीं रहते।  बिलकुल पक्की सच्ची बात है।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

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