निष्काम कर्म के बिना जीवन निखरेगा नहीं

एक फौजी आता था। छः -आठ साल पहले की बात है । एम.ए. पढ़ा था। गुजर जाति का था, सरदार था। तो बड़ी श्रद्धा उसकी आँखों में....मैं कभी घूमने गया तो हाथ जोड़ के पीछे चलता था सरदार। मैंने कहा  "तुम कहाँ से आते हो? क्या बात है ?"

बोले "स्वामीजी ! मैं इतवार - बुधवार को आपकी कथा होती है | एक बार आ गया था। फिर मेरे को अच्छा लगा, मैं आता रहा। स्वामीजी अब तो मेरी बदली हो रही है। लेकिन मैं बहुत-बहुत आभारी हूँ। कि मैं यहाँ आया और मेरी शराब छूट गयी।  मेरे हिस्से का शराब दूसरों को दे देता था। नहीं तो मैं शराब के लिए लड़ मरता था। मेरा माँस खाना छूट गया, आपने तो छुड़वाया नहीं। केवल इस रेंज में आया तो छूट गया। और स्वामीजी ! पहले मैं अपना काम टालम - टोल करता था अभी मैं अपने ऑफिस का , ये हनुमान कैंप में जो ऑफिस है ,ये अपना आश्रम के सामने वो नदी के उस किनारे जो है।  नदी के एक किनारे अपना आश्रम और दूसरे किनारे फौजियों के डेरे है। स्वामीजी! मैं वहाँ काम करता हूँ।  फ़ौज में हूँ।  पहले तो मैं अपना काम भी असिस्टेंट को या दूसरे को दे देता था। लेकिन अभी मैं अपना भी कर लेता हूँ बॉस का भी कर लेता हूँ। और कोई साथी होता है उनका काम भी कर लेता हूँ, काम करने में भी मजा आ रहा है महाराज ! ध्यान का थोड़ा सा मजा आया तो अब पता चलता है कि सेवा में कितना मजा है महाराज ! मैं तो ढूंढ लेता हूँ सेवा "


निष्काम कर्म के बिना जीवन निखरेगा नहीं। ईश्वर प्रीति अर्थ कर्म किये बिना जीवन का विकास होगा ही नहीं। कुछ लोग करते हैं थोड़ा काम तो फिर अधिकार के लिए झपट झपट के मर रहे है। पद और प्रतिष्ठा के लिए मर रहे है। अपनी योग्यता को उसी में मार रहे है।
पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

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