सेवा करने वाला स्वामी हो जाता है

सेवा लेने वाला गुलाम रहता है और सेवा करने वाला स्वामी हो जाता है | सेवक आये तो स्वामी लाचार होता है कि 'अरे आज फलाना नहीं आया, अरे वो आया नहीं' लेकिन जो सेवा करता है स्वामी आये चाहे आये सेवक तो अपना उनकी पराधीनता महसूस नहीं करता है नौकरानी की याद में सेठानी दुःखी होती है लेकिन सेठानी की याद में नौकरानी दुखी नहीं होती है , नौकरानी तो रुपयों की याद में दुखी हो सकती है, सेठानी की याद में नौकरानी दुखी नहीं होती सेवा लेने वाला भले सेवक को याद करे लेकिन सेवा करने वाले की गाड़ी तो ऐसे ही चल जाती है

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति “

सच्ची सेवा

सच्ची सेवा का उदय उसी दिन से होता है कि सेवक प्रण करले कि मुझे इस मिटने वाले नश्वर शरीर को,कब छूट जाये कोई पता नहीं इस नश्वर शरीर से , इस नश्वर तन से अगर हो सके तो ,शारीरिक क्षमता हो तो, तन से सेवा करुँगा ।  और भाव सबके लिए अच्छा रखूंगा ये मन से सेवा करे ।  और लक्ष्य सबका ईश्वरीय सुख बनाऊंगा ये बुद्धि से सेवा करने का निर्णय कर ले और बदले में मेरेको कुछ नहीं चाहिए। बदले में कुछ नहीं चाहिए क्योंकि शरीर प्रकृतिका है मन प्रकृति का है बुद्धि प्रकृति की है. और जहाँ सेवा कर रहे है वो संसार प्रकृति का है। संसार के लोग प्रकृति के है, संसार की परस्थिति प्रकृति की है।  तो प्रकृति की चीजे प्रकृति में अर्पण कर देने से आप प्रकृति के दबाव से और प्रकृति के आकर्षण से मुक्त हो जाते है । जब प्रकृति के दबाव से और प्रकृति के आकर्षण से मुक्त हुए तो आप परमात्मा में टिक गए। जो आपका स्वतः स्वभाव था आप उसमे टिक गए। उसके आनंद में आप आ गए।

 ये एक दिन की बात नहीं है , धीरे धीरे होगा | लेकिन रोज ये मन को बताये कि हमको तो सेवा करनी है।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति “

ज्ञानी महात्मा की सेवा

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।

'उस ज्ञान को तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भली भाँति दण्डवत् प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म-तत्त्व को भलीभाँति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे।'
(भगवद् गीताः 4.34)

सच्ची सेवा में सफलता

जो किसी को प्रेम करता है वो किसी को द्वेष करेगा।  जो कुछ चाहता है वो कुछ गँवाता है । लेकिन  जो कुछ नहीं चाहता वह कुछ नहीं गँवाता ।  और जो किसीको प्रेम नहीं करता वो सबको प्रेम करता है और जो सबको प्रेम करता वो किसी व्यक्तित्व में परिस्थितित्व में बंधता नहीं है और वो निर्बंध हो जाता है।  तो जो निर्बंध हो जाता है तो दूसरोंको भी निर्बंध करने का सामर्थ्य उसका निखरता है।  जो निर्दुःख हो जाता है वो दूसरों के दुःख दूर करनेमें सक्षम हो जाता है। जो निरहंकार हो जाता है वो सच्ची सेवा में सफल हो जाता है। औरोंको निरहंकार होने के रास्ते पे ले जाता है।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति “

सच्चाई से सेवा

सेवा में जो बदला चाहता है वो सेवा के धन को कीचड़ में डाल देता है। सेवा करे और बदला कुछ मिले, हमारा यश हो , हमें पद मिले, हमें मान मिले, तो वह सेवक व्यक्तित्व बनाना चाहता है और व्यक्तित्व हमेशा सत्य से विरोध में खड़ा रहेगा। व्यक्तित्व सत्य से विरोध में खड़ा रहेगा तो सत्य स्वरुप (सच्चाई) से सेवा नहीं करने देगा। जो सच्चाई से सेवा नहीं करने देगा तो सच्चाई से मुक्ति भी नहीं पाने देगा। सच्चाई तो ये है कि सेवा के बदले कुछ न चाहना। जब कुछ न चाहेंगे तो जिसका सब कुछ है वो संतुष्ट होगा अपना अंतरात्मा तृप्त होगा, खुश होगा।  जब अंतरात्मा तृप्त होगा, खुश होगा तो सब कुछ न चाहने वालो को तो सब कुछ मिलता है।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति “

विश्व की सेवा

जो अपनी सेवा कर सकता है वह विश्व की सेवा कर सकता है। चाहे उसके पास रुपया पैसा नहीं हो, फिर भी वह सेवा कर सकता है। किसीको रोटी खिलाना, वस्त्र देना इतना ही सेवा नहीं है,किसीको दो मीठे शब्द बोलना,उसके दुःख को  हरना यह बड़ी सेवा है। निगुरे को गुरु के द्वार पर पहुचाना ये बड़ी सेवा है। असाधक को साधक बनाना ये भी सेवा है। अनजान को जानकारी देना ये भी सेवा है। भूखे को  अन्न देना यह सेवा है।  प्यासे को पानी देना यह सेवा है। अभक्त को भक्त बनाना यह सेवा है। उलझे हुए की उलझने मिटाना यह सेवा है और जो देता है वो पाता है। जो दूसरोंको कुछ न कुछ देता है...और नहीं तो दो मीठे शब्द ही सही ,और नहीं तो दो भगवान की बात ही सही।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति “

अपनी सेवा

प्रभु की सेवा वही कर पाता है जो अपनी सेवा कर पाता है, और अपनी सेवा वही है कि अपने को परिस्थितियों  का गुलाम ना बनाये। परिस्थितियों की दासता से मुक्त करे। वही स्वतंत्र व्यक्ति है और जो स्वतंत्र है वही सेवा कर सकता है | पद और कुर्सी मिलने से सेवा होगी और बिना कुर्सी के सेवा नहीं होगी - ये नासमझी है।


पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति “

मन को छूट मत दो

मन में विकार आयें तो विकारों को सहयोग देकर अपना सत्यानाश मत करो। दृढ़ता नहीं रखोगे और मन को जरा-सी भी छूट दे दोगे कि 'जरा चखने में क्या जाता है.... जरा देखने में क्या जाता है.... जरा ऐसा कर लिया तो क्या? ....जरा-सी सेवा ले ली तो उसमें क्या?...' तो ऐसे जरा-जरा करते-करते मन कब पूरा घसीटकर ले जाता है, पता भी नहीं चलता। अतः सावधान !मन को जरा भी छूट मत दो।

पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘हमारे आदर्श’

आगे बढ़ता जा

हे विद्यार्थी ! तू अपने को अकेला मत समझना... तेरे दिल में दिलबर र दिलबर का ज्ञान दोनों हैं.... ईश्वर की असीम शक्ति तेरे साथ जुड़ी है। परमात्म-चेतना और गुरुतत्त्व-चेतना, इन दोनों का सहयोग लेता हुआ तू विकारों को कुचल डाल, नकारात्मक चिन्तन को हटा दें, सेवा और स्नेह से, शुद्ध प्रेम और पवित्रता से आगे बढ़ता जा.....

पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘हमारे आदर्श’

माता-पिता और गुरु की सेवा

शास्त्रों में आता है कि जिसने माता-पिता और गुरु का आदर कर लिया उसके द्वारा सम्पूर्ण लोकों का आदर हो गया और जिसने इनका अनादर कर दिया उसके सम्पूर्ण शुभ कर्म निष्फल हो गये। वे बड़े ही भाग्यशाली हैं जिन्होंने माता-पिता और गुरु की सेवा के महत्त्व को समझा तथा उनकी सेवा में अपना जीवन सफल किया।

पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘हमारे आदर्श’

जिसके जीवन में संयम है

जिनके जीवन में सयंम है, सदाचार है, जो यौवन सुरक्षा के नियमों को जानते हैं और उनका पालन करते हैं, जो अपने जीवन को मजबूत बनाने की कला जानते हैं और उनका पालन करते हैं, जो अपने जीवन को मजबूत बनाने की कला जानते हैं वे भाग्यशाली साधक, चाहे किसी देवी-देवता या गुरु की सेवा-उपासना करें, सफल हो जाते हैं। जिसके जीवन में संयम है ऐसा युवक बड़े-बड़े कार्यों को भी हँसते-हँसते पूर्ण कर सकता है।
पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘हमारे आदर्श’

निष्कलंक चरित्र निर्माण के लिए

निष्कलंक चरित्र निर्माण के लिए नम्रता, अहिंसा, क्षमाशीलता, गुरुसेवा, शुचिता, आत्मसंयम, विषयों के प्रति अनासक्ति, निरहंकारिता, जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि तथा दुःखों के प्रति अंतर्दृष्टि, निर्भयता, स्वच्छता, दानशीलता, स्वाध्याय, तपस्या, त्याग-परायणता, अलोलुपता, ईर्ष्या, अभिमान, कुटिलता व क्रोध का अभाव तथा शाँति और शौर्य जैसे गुण विकसित करने चाहिए।

पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘हमारे आदर्श’

मुक्ति की इच्छामात्र

मुक्ति की इच्छामात्र से मनुष्य में सदगुण आने लगते हैं। त्याग, क्षमा, वैराग्य, सहनशीलता, परोपकार, सच्चाई, सेवा दान आदि सब सदगुण केवल मुक्ति की इच्छामात्र से ही पनपने लगते हैं। देह को मैं मानने मात्र से शोषण, ईर्ष्या, राग-द्वेष, भय, हिंसा आदि दुर्गुण पनपने लगते हैं।

पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘गीता प्रसाद’

बुद्धिमानी क्या है ?

तन में शक्ति हो तो उसे सेवा में लगा दो। मन है उसे दूसरे को प्रसन्न करने में लगा दो क्योंकि दूसरे के रूप में भी वही परमात्मा है। दो पैसे हैं तो दूसरों के आँसू पोंछने में लगा दो। बुद्धि है तो दूसरे की भ्रमणा हटाने में लगा दो। यही बुद्धिमानी है।
पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘गीता प्रसाद’

जागता नर सेवीए


धनभागी हैं वे लोग जो 'गोरख ! जागता नर सेवीए।' इस उक्ति के अनुसार किसी आत्मवेत्ता संत को खोज लेते हैं! गुरुसेवा व गुरुमंत्र का धन इकट्ठा करते हैं, जिसको सरकार व मौत का बाप भी नहीं छीन सकता। आप भी वही धन पायें।
पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘भगवन्नाम जप महिमा’

गुरूसेवा सब भाग्यों की जन्मभूमि

"गुरूसेवा सब भाग्यों की जन्मभूमि है और वह शोकाकुल लोगों को ब्रह्ममय कर देती है | गुरुरूपी सूर्य अविद्यारूपी रात्रि का नाश करता है और ज्ञानाज्ञान रूपी सितारों का लोप करके बुद्धिमानों को आत्मबोध का सुदिन दिखाता है |"
-संत ज्ञानेश्वर महाराज
पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘दिव्य प्रेरणा प्रकाश’


विद्यार्थी को गुरुसेवा करनी चाहिए

राजा जनक शुकदेवजी से बोले :

“बाल्यावस्था में विद्यार्थी को तपस्या, गुरु की सेवा, ब्रह्मचर्य का पालन एवं वेदाध्ययन करना चाहिए |”
तपसा गुरुवृत्त्या च ब्रह्मचर्येण वा विभो |

- महाभारत में मोक्षधर्म पर्व
पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘दिव्य प्रेरणा प्रकाश’

दीन-दुःखियों की सेवा

अग्नि में घी की आहुतियाँ देना भी यज्ञ है और दीन-दुःखी-गरीब को मदद करना, उनके आँसू पोंछना भी यज्ञ है और दीन-दुःखियों की सेवा ही वास्तव में परमात्मा की सेवा है, यह युग के अनुरूप यज्ञ है। यह इस युग की माँग है।


पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘भगवन्नाम जप महिमा’