प्रभु की सेवा वही कर पाता है जो अपनी सेवा कर पाता है, और अपनी सेवा वही है कि अपने को परिस्थितियों का गुलाम ना बनाये। परिस्थितियों की दासता से मुक्त करे। वही स्वतंत्र व्यक्ति है और जो स्वतंत्र है वही सेवा कर सकता है | पद और कुर्सी मिलने से सेवा होगी और बिना कुर्सी के सेवा नहीं होगी - ये नासमझी है।
पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति “
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