मन को छूट मत दो

मन में विकार आयें तो विकारों को सहयोग देकर अपना सत्यानाश मत करो। दृढ़ता नहीं रखोगे और मन को जरा-सी भी छूट दे दोगे कि 'जरा चखने में क्या जाता है.... जरा देखने में क्या जाता है.... जरा ऐसा कर लिया तो क्या? ....जरा-सी सेवा ले ली तो उसमें क्या?...' तो ऐसे जरा-जरा करते-करते मन कब पूरा घसीटकर ले जाता है, पता भी नहीं चलता। अतः सावधान !मन को जरा भी छूट मत दो।

पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘हमारे आदर्श’

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