दीन-दुःखियों की सेवा

अग्नि में घी की आहुतियाँ देना भी यज्ञ है और दीन-दुःखी-गरीब को मदद करना, उनके आँसू पोंछना भी यज्ञ है और दीन-दुःखियों की सेवा ही वास्तव में परमात्मा की सेवा है, यह युग के अनुरूप यज्ञ है। यह इस युग की माँग है।


पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘भगवन्नाम जप महिमा’

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