जो किसी को प्रेम करता है वो किसी को द्वेष करेगा। जो कुछ चाहता है वो कुछ गँवाता है । लेकिन जो कुछ नहीं चाहता वह कुछ नहीं गँवाता । और जो किसीको प्रेम नहीं करता वो सबको प्रेम करता है और जो सबको प्रेम करता वो किसी व्यक्तित्व में परिस्थितित्व में बंधता नहीं है और वो निर्बंध हो जाता है। तो जो निर्बंध हो जाता है तो दूसरोंको भी निर्बंध करने का सामर्थ्य उसका निखरता है। जो निर्दुःख हो जाता है वो दूसरों के दुःख दूर करनेमें सक्षम हो जाता है। जो निरहंकार हो जाता है वो सच्ची सेवा में सफल हो जाता है। औरोंको निरहंकार होने के रास्ते पे ले जाता है।
पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति “
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