सच्ची सिक सां सदा सेवा कन

सिंधी संत हो गए। स्वामी साब उनका नाम था। उन्होंने जो श्लोक बनाये उस ग्रन्थ का नाम है ' स्वामी जा श्लोक ' स्वामी के श्लोक....ग्रन्थ का नाम है।  उन्होंने लिखा है  उस ग्रन्थ में

सेवा सच्ची माँ जिन लधो। लधो लाल अण मुलो
 से स्वामी सच्ची सिक सां सदा सेवा कन।  
लत्तां मुक्का मोचड़ा सदा सिर सहन 
रता रंग रहन अट्ठई पहर अजीब जे । 

सच्ची सेवा से जिन्होंने पाया वो लाल ... अनमोल लाल पाया, आत्मा लाल पाया,  आत्मसुख पाया , आत्मसंतोष पाया।  वे तो सदा सच्चाई से सेवा करते है और सेवा के बदले में कभी किसी की गुरु की या माता-पिता की लात सह लेते हैं,  तो कभी कोई खट्टी बात भी सह लेते है |  फिर भी हँसते हँसते सेवा करते रहते है  - जिन्होंने सेवा का मूल्य जाना है। जो सेवा के द्वारा कुछ चाहता है वो तो सेवा के नाम को कलंकित करता है और जो सेवक होकर सुख चाहता है वो भी सेवा के महत्त्व को नहीं जानता ।  

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

सेवा में सावधान रहें

कुर्सी पर चाहे किसीका राज्य हो, भोपाल की कुर्सी पर, दिल्ली की कुर्सी पर चाहे किसीका राज्य हो लेकिन भारत के  दिल की कुर्सियों पर हृदय पर अभी भी भारत के निष्काम कर्मयोगी  संतों का ही राज्य हो रहा है।  बस यह प्रत्यक्ष प्रमाण को देख कर आपलोग भी अपने  जीवन में जो सेवा करते हैं वे भाग्यशाली तो हैं लेकिन असावधान न रहें  , सावधान रहें कि  सेवा का बदला अगर लिया तो सेवा सेवा ही नहीं रही। सेवा से अगर 'दूसरा हमारी सेवा करे' ये चाहा तो ये दुकानदारी हो गयी।  और सेवक के अंतःकरण में इर्ष्या नहीं होती।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

वस्तु और योग्यताएं सेवा में लगा दी

 रावण और कंस क्यों विफल गए ? और क्यों अभी तक फटकार पाते है कि बस उनमें योग्यताएं बहुत सारी थीं , वस्तुएं बहुत सारी थीं लेकिन वो अहंकार विसर्जन करने में, सेवा में नहीं लगाकर, अहंकार को पुष्ट करने में और वासनाओं को भड़काने में लगायी।  इसीलिए वे विफल हैं।  रामजी के पास और कृष्णजी के पास जो वस्तु और योग्यताएं थी वो सेवा में लगा  दी तो रामजी और कृष्णजी अभी तक भारत के हर दिल पर राज्य कर रहे है।  धरती पर कई राजा आये और कई चले गए लेकिन दो राजाओं का नाम अभी भी भारत वासियों के हृदय पर  है वह राज्य राजा रामचन्द्र और राजा कृष्णचन्द्र उनका राज्य है क्योंकि वो भलाई ही अपनी वस्तु और योग्यता का सदुपयोग करने की कला थी उनमें।

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