कुर्सी पर चाहे किसीका राज्य हो, भोपाल की कुर्सी पर, दिल्ली की कुर्सी पर चाहे किसीका राज्य हो लेकिन भारत के दिल की कुर्सियों पर हृदय पर अभी भी भारत के निष्काम कर्मयोगी संतों का ही राज्य हो रहा है। बस यह प्रत्यक्ष प्रमाण को देख कर आपलोग भी अपने जीवन में जो सेवा करते हैं वे भाग्यशाली तो हैं लेकिन असावधान न रहें , सावधान रहें कि सेवा का बदला अगर लिया तो सेवा सेवा ही नहीं रही। सेवा से अगर 'दूसरा हमारी सेवा करे' ये चाहा तो ये दुकानदारी हो गयी। और सेवक के अंतःकरण में इर्ष्या नहीं होती।
पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“
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