मुक्ति की इच्छामात्र से मनुष्य में सदगुण आने लगते हैं। त्याग, क्षमा, वैराग्य, सहनशीलता, परोपकार, सच्चाई, सेवा दान आदि सब सदगुण केवल मुक्ति की इच्छामात्र से ही पनपने लगते हैं। देह को मैं मानने मात्र से शोषण, ईर्ष्या, राग-द्वेष, भय, हिंसा आदि दुर्गुण पनपने लगते हैं।
पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य - ‘गीता प्रसाद’
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