विश्व की सेवा

जो अपनी सेवा कर सकता है वह विश्व की सेवा कर सकता है। चाहे उसके पास रुपया पैसा नहीं हो, फिर भी वह सेवा कर सकता है। किसीको रोटी खिलाना, वस्त्र देना इतना ही सेवा नहीं है,किसीको दो मीठे शब्द बोलना,उसके दुःख को  हरना यह बड़ी सेवा है। निगुरे को गुरु के द्वार पर पहुचाना ये बड़ी सेवा है। असाधक को साधक बनाना ये भी सेवा है। अनजान को जानकारी देना ये भी सेवा है। भूखे को  अन्न देना यह सेवा है।  प्यासे को पानी देना यह सेवा है। अभक्त को भक्त बनाना यह सेवा है। उलझे हुए की उलझने मिटाना यह सेवा है और जो देता है वो पाता है। जो दूसरोंको कुछ न कुछ देता है...और नहीं तो दो मीठे शब्द ही सही ,और नहीं तो दो भगवान की बात ही सही।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति “

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