सच्चाई से सेवा

सेवा में जो बदला चाहता है वो सेवा के धन को कीचड़ में डाल देता है। सेवा करे और बदला कुछ मिले, हमारा यश हो , हमें पद मिले, हमें मान मिले, तो वह सेवक व्यक्तित्व बनाना चाहता है और व्यक्तित्व हमेशा सत्य से विरोध में खड़ा रहेगा। व्यक्तित्व सत्य से विरोध में खड़ा रहेगा तो सत्य स्वरुप (सच्चाई) से सेवा नहीं करने देगा। जो सच्चाई से सेवा नहीं करने देगा तो सच्चाई से मुक्ति भी नहीं पाने देगा। सच्चाई तो ये है कि सेवा के बदले कुछ न चाहना। जब कुछ न चाहेंगे तो जिसका सब कुछ है वो संतुष्ट होगा अपना अंतरात्मा तृप्त होगा, खुश होगा।  जब अंतरात्मा तृप्त होगा, खुश होगा तो सब कुछ न चाहने वालो को तो सब कुछ मिलता है।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति “

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