बुद्धिमानी क्या है ?

तन में शक्ति हो तो उसे सेवा में लगा दो। मन है उसे दूसरे को प्रसन्न करने में लगा दो क्योंकि दूसरे के रूप में भी वही परमात्मा है। दो पैसे हैं तो दूसरों के आँसू पोंछने में लगा दो। बुद्धि है तो दूसरे की भ्रमणा हटाने में लगा दो। यही बुद्धिमानी है।
पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘गीता प्रसाद’

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