निष्काम सेवा का प्रभाव

राजा की सवारी जा रही थी, बड़ा यशोगान हो रहा था। बचपन में ही बाप छोड़ कर रवाना हो गया |  ऐसा बालक अपनी विधवा माँ को बोलता है की ‘ माँ ! राजा साहब देखो ! हाथी पे जा रहे…. रथ पे जा रहे…मुझे इस राजा से मिलना है।’ माँ ने कहा ‘बेटा राजा से मिलना है तो एक ही उपाय है। राजा का नया महल बन रहा है। वहाँ जाकर काम कर। हफ्ते हफ्ते में पगार देते है।  तू लेना कुछ मत। अपने आप राजा मिल जायेगा तुझे।’

लड़के ने काम शुरू किया | हफ्ते हफ्ते की जो खर्ची मिलती थी उसने एक बार भी नहीं ली | बोले नहीं लेना है।  पैसा नहीं लेता …पैसा नहीं लेता … काम कर रहा है।  दिल लगाके कर रहा है।  इसकी खबर ऊँचे अधिकारी को पहुंची। फिर और ऊँचे को पहुंची।  यहाँ तक वजीर तक पहुंची और वजीर उस लड़के को देखने आया और वजीर ने जाकर राजा को कहा कि एक लड़का है। जवान है, अभी जवानी उभर रही है और काम खूब करता है। वो पैसा नहीं ले रहा है। बोले ये कैसे? बोले क्या पता?

जाँच करो !! वजीर ने जाँच किया कि “भाई! क्यों नहीं पैसा ले रहा?

बोले “नहीं ! राजा साहब का महल है।  इतनी तो सेवा हम को मिल जाये। ”

“तो तेरे को पैसे की जरूरत नहीं है ?”

बोले “जरूरत नहीं है ऐसी बात नहीं है |” मेरी माँ विधवा है। पिता मर गए। खेत में तो बहुत थोड़ा सा आता है। लेकिन गुजारा हो जाता है।  सेवा कर रहा हूँ ”

राजा तक खबर गयी।  राजा ने देखा कि ‘नपातुला है, बचपन में पिता छोड़कर मर गए। विधवा माता है। २-१ एकड़ का खेत है उससे गुजारा कैसे? और काम कर रहा है दिल लगा के और कुछ  नहीं लेता है। उसको जरा बुलाओ। राजा ने अपने महल में बुलाया। और कुछ नहीं लेता है तो उसको भोजन-वोजन कराया और बड़ा मान दिया।

और राजा उस पर बड़ा खुश हो गया। ‘अच्छा ! तूने इतने दिन तक मेहनताना नहीं लिया। तो अब क्या करो दस-पाँच हजार रूपया तुमको दे देते है ‘वैसे तो दोसौ -पांचसौ होता था अब दस-पाँच हजार रुपये आ रहे है। बोले ‘ नहीं ! नहीं ! दस-पाँच हजार क्या करना है ? मेरी तो ये भावना थी की मैं राजा साहब से मिलूँ तो माता ने कहा कुछ मत लेना।  सेवा करना।  सेवा से तुम्हारा जो भी संकल्प हो फलेगा।  तो मुझे आप मिल गए बस और  कुछ नहीं चाहिए।

राजा कहता है कि ‘ मैं तो तुझे मिल गया लेकिन मुझे तेरे जैसा निष्कामी पुत्र मुझे मिल गया अब तू मेरा बेटा है। ‘  कुछ दिन आता जाता रहा तो रानी साहिबा ने भी उसके स्वभाव को परख लिया, राजा ने उसकी निष्कामता को परख लिया कह दिया तू मेरा बेटा है।

कथा तो बड़ी रसपद्र है लेकिन राजा ने उसको बेटा बनाके राजतिलक कर दिया।  जब शोभायात्रा निकली तो पिता और पुत्र…नूतन राजा और पास में भूतपूर्व राजा बैठे | नगर में यात्रा निकली तो वो माँ राजा की सवारी देखने को निकली। राजा को बताया नूतन राजा ने की वो मेरी माता है। बोले “वो तेरी माता नहीं मेरी भी माता है।  जय हो तेरे जैसे निष्कामी योगी को जन्म दिया। तू तो रथ से उतर कर प्रणाम करने जाता है , लेकिन मैं भी उस माता को प्रणाम करने चलता हूँ। उसके आगे तू भी बेटा  है मैं भी बेटा हूँ।”

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

No comments:

Post a Comment