सेवा का फल कुछ नहीं चाहिए

सेवा चाहो मत , सेवा  करो उत्साह से। सेवा का फल चाहना सेवा धर्म को भ्रष्ट करना है। सेवा के फल को तुच्छ करना है। ......हमें तो कुछ नहीं चाहिए। जिसको कुछ नहीं चाहिए उसको सब कुछ जिसका है वो खुद मिल जाता है।

बलि देता ही जाता है कुछ नहीं चाहता है तो सब कुछ जिसका है वही वामन होके आता है। उससे भी कुछ नहीं चाहता है तो वामन उनका द्वारपाल हो जाता है। भगवान वामन बलि राजा का द्वारपाल हो जाता है। जिसका द्वारपाल भगवान है उसको कमी ही क्या रहेगी? शत्रु उनका क्या बिगाड़ेंगे? ऐसे ही तुम्हारे इन्द्रियों के द्वारपाल श्री हरि को कर दो। हे मेरे परमात्मा ! तुम ही रक्षक रहिये। तुम ही प्रेरक और पोषक रहिये। हे मेरे नाथ ! मेरे गुरु, मेरे हरी, मेरे इष्टदेव! प्रभु तेरी जय हो !      हरी ओ ओम ओ ओ ओ ओ ओम।  राम राम।  खूब आनंद ! मधुर आनंद !आत्मिक आनंद परमेश्वरिय आनंद का भाव करो। मस्ती…. माधुर्य….विश्रांति मैं सदा स्वस्थ हूँ।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

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