गुरु का विश्वास संपादन कर लेता है सेवक

सत्यम शिवम सुन्दरम। और जो सत्य है वही शिवकल्याणकारी है और वही सुन्दर है तो हृदय को सुन्दर बनाने के लिए सच्चाई से सेवा करे। सच्चाई से ईश्वर के हो और सच्चाई से गुरु के हो। सच्चाई से समाज के हो। समाज का, गुरु का, ईश्वर का विश्वास संपादन कर लेता है सेवक। गुरु कहेगा की मेरा सेवक है ये ऐसा भद्दा काम नहीं कर सकता है।  ये मेरा सेवक है। गुरु को संतोष होना चाहिए की ये मेरा सेवक है। ईश्वर को संतोष होना चाहिए की ये मेरा जीव है इतना घटिया काम नहीं कर सकता है। समाज को विश्वास होना चाहिए की ‘फलानो भाई …ना ना वो न हु अबिदु झूठु छे ‘ सेवक पर आरोप भी आएंगे।

सेवक यशस्वी होगा, उन्नत होगा उसको  देखकर लोग ईर्षा भी करेंगे, दाह भी आयेंगें, आरोप भी करेंगे और विघ्न भी आएंगे। लेकिन ये विघ्न,  ये आरोप , ये दाह सेवक की क्षमताएं विकसित करने के लिए आते है ऐसा सेवक को सदैव याद रखना चाहिए। और फिर सेवक को सुबह उठकर अपना आत्मबल बढ़ाना चाहिए।  लम्बे श्वास ले प्राणशक्ति को बढ़ाये, भावशक्ति को बढ़ाये, क्रियाशक्ति को बढ़ाये ऎसा ध्यान सीख लेना चाहिए। ऐसा ध्यान करना चाहिए। तो और सेवा में चार चाँद लग जायेंगे। हरि ॐ।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

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