महापुरुषों का निष्काम कर्म योग

मेरे गुरुदेव किताबों की गठरी बाँधकर गाँव गाँव जाते।  नैनीताल के पहाड़ से हनुमान गढ़ी के पास में एक पहाड़ है सीतला मंदिर आश्रम का । उस पहाड़ से उतरते नीचे गाँव फिर दूसरे पहाड़ पे चढ़ते दूसरा छोटा सा गाँव। सिर पर गठरी बाँध कर किताबों  की अस्सी साल की उम्र है साईं लीलाशाह जी महाराज। अस्सी साल की उम्र में सिर पर गठरी किताबों की बाँधके पहाड़ उतरते। गावों में किताबें बाटते। यौवन सुरक्षा जैसी पुस्तक, नारी धर्म जैसी पुस्तक स्त्रियों को , छोकरों को योगासन और  योगयात्रा जैसी  पुस्तके....योगयात्रा उस समय नहीं थी लेकिन उसी प्रकार की पुस्तकें दे आते और प्रसाद भी दे आते। फल फ्रूट ले जाये तो वेट बढ़ जायेगा इस लिए काजू और किशमिश  खरीद लेते थे। और वो सबको इकठ्ठा करके दो दो दाने देके, जो भी यथायोग्य देके, थोड़ा सत्संग सुनकर एक एक किताब दे कर ये कहते की "आज शुक्रवार है तो अगले शुक्रवार को इस गाँव में आऊंगा। और ये जो किताब दी है वो पढ़ लेना अच्छा लगे वो याद करना और लिख लेना और पूरी किताब दो-तीन-चार बार जरूर पढ़ना। और हो सकता है की में कुछ पूछूं भी इसीलिए तैयार रहना। और अगले शुक्रवार को आऊंगा। ये किताबें वापस ले जाऊँगा दूसरी किताबें दे जाऊँगा "

जिस महापुरुष के संकल्प मात्र से पेड़ चल पड़ा है , जिस महापुरुष को बीस-बाईस साल की उम्र में परमात्मा का साक्षात्कार हुआ है। वो महापुरुष अस्सी साल की उम्र में सर पे गठरी बाँध के किताब को गाँव गाँव पहुँचाते है, क्या उनके पास कोई फालतू समय था? अगर वो ऐसा नहीं करते, गाँव गाँव नहीं घूमते और घूमते-घामते गोधरा नहीं आते तो मेरे को उनका दर्शन भी नहीं होता। और मेरे वैराग्य को पुष्टि भी नहीं मिलती। मैंने एक बार दूर से दर्शन किया उनके दर्शन मात्र से मेरा सोया हुआ वैराग्य जगा और फिर सब कुछ छोड़कर उनके चरणों तक पहुँचने की हिम्मत भी आ गयी। ये उन महापुरुषों के निष्काम कर्म योग का फल हम लाखों लोगों को मिल रहा है। उन्होंने तो ये नहीं कहा की ' जय लीलाशाह, जय जय लीलाशाह बोलना। नहीं....लेकिन उनकी जय किये बिना रहा नहीं जायेगा।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

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