दूसरे को सुख मिले

दूसरे का दुःख मिटाना तो ठीक है लेकिन दूसरे के दुःख मिटाने पर भी इतनी दृष्टि जोरदार न रखे जितनी रखे कि उसको सुख मिले..। जब सुख मिलेगा तो दुःख के सिर पर पैर रख देगा वो तो । और सुख तुम कहाँ से लाओगे तुम्हारे पास फैक्ट्री है क्या? सुख तुम लाओगे महाराज जितने जितने तुम निष्कामी होंगे उतना उतना आपका अंतःकरण सुखी होगा और दूसरे को सुखी करने के विचार भी उसी में उठेंगे।

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

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