गुरुलोग अपने प्यारे शिष्यों से कड़ी सेवा करवाते हैं

जिन लोगों को मुफ्त में आत्मज्ञान सुनने को मिलता है उनको ज्ञान का पूरा लाभ नहीं मिल पाता। उनके हृदय में ज्ञान प्रवेश ही होगा तो ज्ञान का स्वाद नहीं आयगा। जितने प्रमाण में कुछ न कुछ सेवा करके, परिश्रम करके ज्ञान लेते हैं उतने अंश में ज्ञान फलता है। जिनको बिना परिश्रम के आध्यात्मिक शक्तियाँ मिलती हैं वे ज्यादा समय तक टिकती नहीं, पचती नहीं, अजीर्ण होकर निकल जाती हैं। फिर वे बेचारे ऐसे के ऐसे ठंठनपाल हो जाते हैं। इसीलिए गुरुलोग अपने प्यारे शिष्यों से कड़ी सेवा करवाते हैं, परिश्रम करवाते हैं, परोपकार के कार्य करवाते हैं, तन-मन-धन-बुद्धि जो भी योग्यता शिष्य के पास हो वह परहित में लगवाते हैं। इससे समाज का भी कल्याण होता है और शिष्य का भी परम कल्याण हो जाता है।

-पूज्य बापूजी : आश्रम पुस्तक - ‘समता साम्राज्य’

No comments:

Post a Comment