सेवा से आत्मज्ञान व्यवहार में

"ॐ....ॐ....ॐ.... आनन्द.... खूब आनन्द.... विशाल हृदय, विशाल ज्ञान... दिव्य ज्ञान... विशाल प्रेम.... ॐ....ॐ..... सर्वोऽहम्... सुखस्वरूपोऽहम्। मैं सर्व हूँ.... मैं सुख स्वरूप हूँ.... मैं आनन्दस्वरूप हूँ... मैं चैतन्यरूप हूँ... ।"
सेवा इस आत्मज्ञान को व्यवहार में ले आती है। भावना इस आत्मज्ञान को भावशुद्धि में ले आती है। वेदान्त इस जीवन को व्यापक स्वरूप से अभिन्न बना देता है।
इस विशाल अनुभव से चाहे हजार बार फिसल जाओ, डरो नहीं। चलते रहो इसी ज्ञानपथ पर। एक दिन जरूर सनातन सत्य का साक्षात्कार हो जायेगा। दृष्टि जितनी विशाल रहेगी, मन जितना विशाल रहेगा, बुद्धि जितनी विशाल रहेगी, उतना ही विशाल चैतन्य का प्रसाद प्राप्त होता है। उस प्रसाद से सारे दुःख दूर हो जाते हैं।

-पूज्य बापूजी : आश्रम पुस्तक - ‘अनन्य योग’

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