श्रीमद् भागवत में सेवा महिमा

भगवान श्री कृष्ण कहने लगेः "हे मुनीश्वर ! पचास वर्ष की निष्कपट भक्ति से भी हृदय का अज्ञान दूर नहीं होता है। हृदय शुद्ध जरूर होता है पर अज्ञान नहीं मिटता। ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष के एक मुहूर्त के समागम से, उनके चरणों की एक मुहूर्त की सेवा से हृदय का अज्ञान दूर हो सकता है। धातु से बनी मूर्ति में भगवत्-बुद्धि, जल से भरे हुए जलाशयों में तीर्थ-बुद्धि, हाड़-मांस के पुत्र-परिवार में मेरेपन की बुद्धि करते हैं पर महापुरुषों में जिनकी पूज्य बुद्धि नहीं है वे साक्षात् गोखर माने गये हैं।"

(श्रीमद् भागवतः 10.84.11.12.13)
-आश्रम पुस्तक - ‘समता साम्राज्य’

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