स्त्री के सद्गुण

स्त्री में यह गुण है। एक बार अगर भक्ति को, ज्ञान को, सेवा को ठीक से पकड़ लेती है तो फिर जल्दी से छोड़ती नहीं। पुरुष छोड़ देता है। स्त्री नहीं छोड़ती। मीरा ने श्रीकृष्ण की भक्ति पकड़ ली तो पकड़ ली। शबरी ने मतंग ऋषि के चरणों में अपना जीवन सेवा और साधनामय कर लिया।

स्त्री में ऐसे गुण भी होते हैं। भय, कपट, अपवित्रता आदि दुर्गुण पुरुष की अपेक्षा स्त्री शरीर में विशेष रूप से रहते हैं तो श्रद्धा, समर्पण, सेवा आदि सदगुण, सेवा आदि सदगुण भी पुरुष की अपेक्षा विशेष रूप से रहते हैं।
-पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘दैवी संपदा’

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