आप अमानी दूसरे को मान

सेवाकार्य तो करें लेकिन राग-द्वेष से प्रेरित होकर नहीं,  अपितु दूसरे को मान देकर, दूसरे को विश्वास में लेकर सेवाकार्य करने से सेवा भी अच्छी तरह से होती है और साधक की योग्यता भी निखरती है ।
-पूज्य बापूजी : आश्रम पुस्तक - 'जीवनोपयोगी कुंजियाँ'

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