सेवा करते-करते भीतर का संपर्क


कोई भी सेवा करने से पहले अपने भीतर गोता मारो। सेवा पूरी कर लेने के बाद भी अपने भीतर चले आओ, तो सेवा बढ़िया हो जाएगी। सेवा करते-करते भीतर का संपर्क नहीं रखोगे तो वहाँ भी राग-द्वेष, पार्टी-बाजी, दलबन्दी हो जाएगी और सेवा सेवा नहीं रहेगी, मुसीबत बन जाएगी। नाम तो सेवा का होगा पर पद की लालच सताती रहेगी। अपमान की चोट हृदय को झकझोरती रहेगी। मान की अभिलाषा दिल को लालायित करती रहेगी। दिल दिलबर से दूर होता जाएगा।
-आश्रम पुस्तक - ‘समता साम्राज्य’

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