महापुरुषों का सात्त्विक तेज

कभी किसी के डण्डे के तेज से कोई काम कर दे तो काम करने वाले का कल्याण नहीं होता। काम कराने वाले का उल्लू सीधा होता है। महापुरुषों का तेज ऐसा होता है कि अपना चित्त तो परमात्म-रस से पावन होता ही, जिनसे वे भक्ति, ज्ञान, सेवा, स्मरण, साधना करवाते हैं, जिनको भीतर से दैवी शक्ति का धक्का लगाते हैं उनके जीवन का भी उद्धार हो जाता है। महापुरुषों का ऐसा सात्त्विक तेज होता है।
-पूज्य बापूजी : आश्रम पुस्तक - ‘दैवी संपदा’

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