राग-द्वेष से बचे

जिसको आप बुरा समझते हो उसके साथ उदारता का व्यवहार करो। जो ऐसा वैसा दिखता है उसमें भी गुण होंगे ही। उसके गुण देखकर प्रशंसा करो। उसके दोषों को भूल जाओ। अपने आप चित्त में शांति रहने लग जाएगी। राग-द्वेष को पुष्ट किया तो सब ध्यान-भजन चौपट। एक ही परमात्मा को खण्ड-खण्ड करके अच्छे-बुरे मानकर देखते रहोगे तो चित्त में क्षोभ बना रहेगा, ईर्ष्या और जलन होती रहेगी। अन्तःकरण अशुद्ध बनेगा।

सेवा करो, जप करो, अन्तःकरण को शुद्ध करो, फिर एक दूसरे से राग-द्वेष करो तो साधना की हो गई सफाई। जमा उधार दोनों बराबर। कमाई शून्य।

-आश्रम पुस्तक - ‘समता साम्राज्य’

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