दायाँ हाथ बायें की सेवा कर ले तो क्या अभिमान करे

जिनको ज्ञान में रूचि है, ईश्वरत्व के प्रकाश में जो जीते हैं, उनको कुछ करके स्वर्ग में जाकर सुख लेने की इच्छा नहीं। नर्क के दुःख के भय से पीड़ित होकर कुछ करना नहीं। वे तो समझते हैं कि सब मेरे ही अंग है। दायाँ हाथ बायें की सेवा कर ले तो क्या अभिमान करे और बायाँ हाथ दाहिने हाथ की सेवा कर ले तो क्या बदला चाहेगा ? पैर चलकर शरीर को कहीं पहुँचा दे तो क्या अभिमान करेंगे और मस्तिष्क सारे शरीर के लिए अच्छा निर्णय ले तो क्या अपेक्षा करेगा ? सब अंग भिन्न भिन्न दिखते हैं फिर भी हैं तो सभी एक शरीर के ही।
ऐसे ही सब जातियाँ, सब समाज, सब देश भिन्न-भिन्न दिखते हैं, वे सत्य नहीं हैं। जातिवाद सत्य नहीं है। स्त्री और पुरूष सत्य नहीं है। बाप और बेटा सत्य नहीं है। बेटा और बाप, पुरूष और स्त्री, जाति और उपजाति तो केवल तरंगें हैं। सत्य तो उनमें चैतन्यस्वरूप जलराशि ही है।
........... नारायण... नारायण....नारायण....

-पूज्य बापूजी : आश्रम पुस्तक - ‘अनन्य योग’

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