प्यारे सेवक आगे चलकर आत्मज्ञान के अधिकारी

भगवान के भक्त की भक्ति में विघ्न डालने से, भक्त को सताने से अपने पुण्य शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। इससे विपरीत, भगवान के भक्त को जो सहाय करते हैं उनको बड़ा पुण्य होता है। साधारण आदमी की सेवा करने से जो पुण्य होता है उससे अनन्तगुना पुण्य भगवान के भक्त की सेवा करने से होता है। जैसे, किसी चपरासी को दूध को प्याला पिला दो, ठीक है, होगा थोड़ा सा लाभ। अगर राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री तुम्हारा दूध का प्याला पी लें तो इसका प्रभाव कुछ और होगा।
इसी प्रकार जो उन्नत भक्त हैं, ज्ञानी महापुरुष हैं उनकी सेवा में हमारा तन-मन-धन जो कुछ भी लग जाय उसका अनंत गुना लाभ होता है। सच्चे सेवक यह अनंत गुना लाभ ऐहिक जगत विषयक नहीं लेना चाहते। वे और किसी को नहीं चाहते, जिनकी सेवा करते हैं उन्हीं की प्रीति चाहते हैं। उनके होकर जीने में अपने जीवन की धन्यता का अनुभव करते हैं। ऐसे प्यारे सेवक आगे चलकर आत्मज्ञान के अधिकारी बन जाते हैं। आत्मज्ञान के लिए अधिकारी बनना पड़ता है। केवल वरदान या आशीर्वाद से आत्मज्ञान नहीं हो सकता।
-पूज्य बापूजी : आश्रम पुस्तक - ‘समता साम्राज्य’

No comments:

Post a Comment