ब्रह्मविचार-प्रधान जो सत्संग है, वह सत्संग जैसे-तैसे नहीं मिलता। अनधिकारी आदमी उस सत्संग में बैठ नहीं सकता। जिसका जप, तप, सेवा, पूजा, कुछ-न-कुछ उस अन्तर्यामी परमात्मा को, ईश्वर को स्वीकार हो गया है वही आदमी सदगुरू की प्राप्ति कर सकता है, सत्संगति की प्राप्ति कर सकता है। अन्यथा उसको कथा अथवा कहानियाँ, चुटकुले ही मिलकर रह जाएँगे। कथा-वार्ता तो साधारण आदमी को भी मिल जाती है। लेकिन सत्स्वरूप परमात्मा का संग हो जाये, बोध हो जाय ऐसा सत्संग मिलना दुर्लभ है।
पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य - ‘सहज साधना’
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