संत की सेवा

संत-महात्मा-सदगुरू की सेवा बड़े भाग्य से मिलती है। अभागे आदमी को तो संत की सेवा मिलती ही नहीं। उसे संत दर्शन की रूचि भी नहीं होती।
तुलसी पूर्व के पाप से हरिचर्चा न सुहाय।
कोई पुण्यात्मा है कि दुरात्मा, इसकी कसौटी करना है तो उसे ले जाओ किसी सच्चे संतपुरूष के पास। अगर वह आता है तो तुम उसे जितना पापी समझते हो उतना वह पापी नहीं है। अगर नहीं आता है तो तुम उसे जितना धर्मात्मा मानते हो उतना वह धर्मात्मा नहीं है। शास्त्रवेत्ता कहते हैं कि सात जन्म के पुण्य जब जोर मारते हैं तब संत-दर्शन की इच्छा होती है।
पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘सहज साधना’

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