अभ्यास में योग को मिला दो

अभ्यास तो सब करते हैं। झाडू लगाने का अभ्यास नौकरानी भी करती है और मतंग ऋषि के आश्रम में शबरी भी करती है। रोटी बनाने का अभ्यास बावर्ची भी करता है, माँ भी करती है और गुरू के आश्रम में शिष्य भी करता है। बावर्ची का रोटी बनाना नौकरी हो जाता है, माँ का रोटी बनाना सेवा हो जाती है और शिष्य का रोटी बनाना भक्ति हो जाती है। नौकरानी का झाड़ू लगाना नौकरी हो जाती है और शबरी का झाड़ू लगाना बन्दगी हो जाती है।
अभ्यास तो हम करते हैं लेकिन अभ्यास में योग को मिला दो। जिस अभ्यास का प्रयोजन ईश्वर प्राप्ति है, इष्ट की प्रसन्नता है, सदगुरू की प्रसन्नता है वह अभ्यास योग हो जाता है। जिस अभ्यास का प्रयोजन विकारों की तृप्ति है, वह अभ्यास संसार हो जाता है।

पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘सहज साधना’

No comments:

Post a Comment