राजा सुषेण को विचार आया कि, "मैं किसी जीवन के रहस्य समझने वाले महात्मा की शरण में जाऊँ। पण्डित लोग मेरे मन का सन्देह दूर नहीं कर सकते।"
राजा सुषेण गाँव के बाहर महात्मा के पास पहुँचा। उस समय महात्मा अपनी बगीची में खोदकाम कर रहे थे, पेड़-पौधे लगा रहे थे। राजा बोलाः
"बाबाजी ! मैं कुछ प्रश्न पूछने को आया हूँ।"
बाबाजी बोलेः "मुझे अभी समय नहीं है। मुझे अपनी बगीची बनानी है।"
राजा ने सोचा कि बाबाजी काम कर रहे हैं और हम चुपचाप बैठें, यह ठीक नही। राजा ने भी कुदाली फावड़ा चलाया।
इतने में एक आदमी भागता-भागता आया और आश्रम में शरण लेने को घुसा और गिर पड़ा, बेहोश हो गया। महात्मा ने उसको उठाया। उसके सिर पर चोट लगी थी। महात्मा ने घाव पोंछा, जो कुछ औषधि थी, लगाई। राजा भी उसकी सेवा में लग गया। वह आदमी होश में आया। सामने राजा को देखकर चौंक उठाः
"राजा साहब ! आप मेरी चाकरी में ? मैं क्षमा माँगता हूँ....।" वह रोने लगा।
राजा ने पूछाः "क्यों, क्या बात है ?"
"राजन् ! आप राज्य में से एकान्त में गये हो ऐसा जानकर आपकी हत्या करने पीछे पड़ा था। मेरी बात खुल गई और आपके सैनिकों ने मेरा पीछा किया, हमला किया। मैं जान बचाकर भागा और इधर पहुँचा।"
महात्मा ने राजा से कहाः "इसको क्षमा कर दो।"
राजा मान गया। उस आदमी को दूध पिलाकर महात्मा ने रवाना कर दिया। फिर दोनों वार्तालाप करने बैठे। राजा बोलाः
"महाराज ! मेरे तीन प्रश्न हैं- सबसे उत्तम समय कौन-सा है ? सबसे बढ़िया काम कौन-सा है ? और सबसे बढ़िया व्यक्ति कौन सा है ? ये तीन प्रश्न मेरे दिमाग में कई महीनों से घूम रहे हैं। आपके सिवाय उनका समाधान देने की क्षमता किसी में भी नहीं है। आप पारावार-दृष्टि हैं, आप आत्मज्ञानी हैं, आप जीवन्मुक्त हैं, महाराज ! आप मेरे प्रश्नों का समाधान कीजिए।
महात्मा बोलेः "तुम्हारे प्रश्नों का जवाब तो मैंने सप्रयोग दे दिया है। फिर भी सुनः सबसे महत्त्वपूर्ण समय है वर्त्तमान, जिसमें तुम जी रहे हो। उससे बढ़िया समय आयेगा तब कुछ करेंगे या बढ़िया समय था तब कुछ कर लेते। नहीं.... अभी जो समय है वह बढ़िया है।
सबसे बढ़िया काम कौन-सा ? जिस समय जो काम सामने आ जाय वह बढ़िया।
उत्तम से उत्तम व्यक्ति कौन ? जो तुम्हारे सामने हो, प्रत्यक्ष हो वह सबसे उत्तम व्यक्ति है।
राजा असंमजस में पड़ गया। बोलाः
"बाबाजी ! मैं समझा नहीं।"
बाबाजी ने समझायाः "राजन् ! सबसे महत्त्वपूर्ण समय है वर्त्तमान। वर्त्तमान समय का तुमने आज सदुपयोग नहीं किया होता, तुम यहाँ से तुरन्त वापस चल दिये होते तो कुछ अमंगल घटना घट जाती। यहाँ जो आदमी आया था उसका भाई युद्ध में मारा गया था। उसका बदला लेने के लिए वह तुम्हारे पीछे लगा था। मैं काम में लगा था और तुम भी अपने वर्त्तमान का सदुपयोग करते हुए मेरे साथ लग गये तो वह बेला बीत गई। तुम बच गये।
सबसे बढ़िया का क्या ? जो सामने आ जाये वह काम सबसे बढ़िया। आज तुम्हारे सामने यह बगीची का काम आ गया और तुम कुदाली-फावड़ा लेकर लग गये। वर्त्तमान समय का सदुपयोग किया। स्वास्थ्य सँवारा। सेवाभाव से करने के कारण दिल को भी सँवारा। पुण्य भी अर्जित किया। इसी काम ने तुम्हें दुर्घटना से बचा लिया।
बढ़िया में बढ़िया व्यक्ति कौन ? जो सामने प्रत्यक्ष हो। उस आदमी के लिए अपने दिल में सदभाव लाकर सेवा की, प्रत्यक्ष सामने आये हुए आदमी के साथ यथायोग्य सदव्यवहार किता तो उसका हृदय-परिवर्तन हो गया, तुम्हारे प्रति उसका वैरभाव धुल गया।
इस प्रकार तुम्हारे सामने जो व्यक्ति आ जाय वह बढ़िया है। तुम्हारे सामने जो काम आ जाय वह बढ़िया है और तुम्हारे सामने में जो समय है वर्त्तमान, वह बढ़िया है।"
पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य - ‘सहज साधना’
very nice
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