व्यवहारिक वेदान्त

तुम्हारे सामने जो व्यक्ति आ जाय वह बढ़िया है। तुम्हारे सामने जो काम आ जाय वह बढ़िया है और तुम्हारे सामने में जो समय है वर्त्तमान, वह बढ़िया है।"
जिस समय तुम जो काम करते हो उसमें अपनी पूरी चेतना लगाओ, दिल लगाओ। टूटे हुए दिल से काम न करो। लापरवाही से काम न करो, पलायनवादी होकर न करो। उबे हुए, थके हुए मन से न करो। हरेक कार्य को पूजा समझकर करो। हनुमानजी और जाम्बवान युद्ध करते थे तो भी राम जी की पूजा समझकर करते थे। तुम जिस समय जो काम करो उसमें पूर्ण रूप से एकाग्र हो जाओ। काम करने का भी आनन्द आयेगा और काम भी बढ़िया होगा। जो आदमी काम उत्साह से नहीं करता, काम को भटकाता है उसका मन भी भटकने वाला हो जाता है। फिर भजन-ध्यान के समय भी मन भटकाता रहता है। इसलिए,

Work  while you work and play while you play, that is the way to be happy and gay.

जिस समय जो काम करो, बड़ी सूक्ष्मदृष्टि से करो, लापरवाही नहीं, पलायनवादिपना नहीं। जो काम करो, सुचारू रूप से करो। बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय काम करो। कम-से-कम समय लगे और अधिक से अधिक सुन्दर परिणाम मिले इस प्रकार काम करो। ये उत्तम कर्त्ता के लक्षण हैं।
जिस समय जो व्यक्ति जो सामने आ जाय उस समय वह व्यक्ति श्रेष्ठ है ऐसा समझकर उसके साथ व्यवहार करो। क्योंकि श्रेष्ठ में श्रेष्ठ परमात्मा उसमें है न ! इस प्रकार की दृष्टि आपके स्वभाव को पवित्र कर देगी।
यह व्यवहारिक वेदान्त है।

पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘सहज साधना’

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