जो निष्काम सेवा करता है उसे ही भक्ति मिलती है। जैसे हनुमान जी रामजी से कह सकते थेः "महाराज ! हम तो ब्रह्मचारी है। हमको योग, ध्यान या अन्य कोई भी मंत्र दे दीजिए, हम जपा करें। पत्नी आपकी खो गयी, असुर ले गये फिर हम क्यों प्राणों की बाजी लगायें?"
किंतु हनुमानजी में ऐसी दुर्बुद्धि या स्वार्थबुद्धि नहीं थी। हनुमानजी ने तो भगवान राम के काम को अपना काम बना लिया। इसलिए प्रायः गाया जाता हैः राम लक्ष्मण जानकी, जय बोलो हनुमान की।
'श्रीरामचरितमानस' का ही एक प्रसंग है जिसमें मैनाक पर्वत ने समुद्र के बीचोबीच प्रकट होकर हनुमानजी से कहाः "यहाँ विश्राम करें।"
किंतु हनुमानजी ने कहाः
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ विश्राम।
(श्रीरामचरित. सुं.का. 1)
निष्काम कर्म करने वाला अपने जिम्मे जो भी काम लेता है, उसे पूरा करने में चाहे कितने ही विघ्न आ जायें, कितनी ही बाधाएँ आ जायें, निंदा हो या संघर्ष, उसे पूरा करके ही चैन की साँस लेता है। निष्काम कर्म करने वाले की अपनी अनूठी रीति होती है, शैली होती है।
पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य - ‘कर्म का अकाट्य सिद्धांत’
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