गुरु दीवो गुरु देवता

गुरु दीवो गुरु देवता गुरु विण घोर अन्धार।
जे गुरु वाणी वेगळा रड़वड़िया संसार।।
जो गुरु वाणी से दूर हैं वे खाक धनवान हैं? जो गुरु के वचनों से दूर हैं वे खाक सत्तावान हैं? जो गुरु की सेवा से विमुख हैं वे खाक देवता हैं? वे तो भोगों के गुलाम हैं। जो गुरु के वचनों से दूर हैं वे क्या खाक अमृत पीते हैं? उनको तो पद-पद पर राग-द्वेष का जहर पीना पड़ता है।
-पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘साधना में सफलता’

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