सत्पुरुषों की सेवा करने से चित्त निर्मल

श्री वशिष्ठजी कहते हैं- "हे रामचंद्र जी !  जैसे कसौटी पर कसने से स्वर्ण अपनी निर्मलता प्रगट कर देता है वैसे ही शुभकर्म या पुण्यकर्म करने से तथा सत्पुरुषों की सेवा करने से चित्त निर्मल हो जाता है। 

पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘आंतर ज्योत’

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