संकल्प अपने लिए नहीं

कच गुरू के प्रिय पात्र कैसे बन पाये ? संजीवनी विद्या कैसे पायी ? कामसंकल्पविवर्जिताः होकर गुरू की सेवा करने से। उनमें अपनी वैयक्तिक कामना की अन्धाधुन्धी नहीं थी। बुद्धि में ओज था, विकास था, प्रकाश था। जब अपना स्वार्थ होता है तब दूसरों का हिताहित भूल जाते है, नीति-नियम भूल जाते हैं। अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और सुख के लिए कामना और संकल्प होता है तो आदमी गलती कर बैठता है। जिसका संकल्प अपने लिए नहीं होता, समष्टि के लिए होता है तो उसकी बुद्धि ठीक काम देती है। अपनी कामना से जहाँ कहीँ सुख लेने जाते हैं तो गड़बड़ी होती है। दूसरों को सुख देने, प्रसन्न करने लग जाते हैं तो उनके सुख और प्रसन्नता में अपना सुख और चित्त की प्रसन्नता अपने-आप आ जाती है। कार्यों में सफलता मिलती है वह मुनाफे में।

पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘सहज साधना’

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