भजन माने क्या ?

भजन माने क्या ? जिस कर्म से, जिस श्रवण से, जिस चिन्तन से, जिस जप से, जिस सेवा से भगवदाकार वृत्ति बने उसे भजन कहा जाता है।
संसार की आसक्ति मिटाने के लिए भजन की आसक्ति अत्यंत आवश्यक है। सारे ज्ञानों व बलों का जो आधार है वह आत्मबल व आत्मज्ञान पाना ही जीवन का उद्देश्य हो। जीवन का सूर्य ढलने से पहले जीवनदाता में प्रतिष्ठित हो जाओ, अन्यथा पछताना पड़ेगा। असफलता और दुर्बलता के विचार उठते ही उसे भगवन्नाम से और पावन पुस्तकों के अध्ययन से हटा दिया करो।
अय मानव ! ऊठ.... जाग...। अपनी महानता को पहचान। कब तक भवाटवी में भटकेगा ? जो भगवान वैकुण्ठ में, कैलास में और ऋषियों के हृदय में है वही के वही, उतने के उतने तेरे पास भी हैं। ऊठ... जाग....। अपने प्यारे को पहचान। सत्संग करके बुद्धि को बढ़ा और परब्रह्म परमात्मा में प्रतिष्ठित हो जा।
शाबाश वीर....! शाबाश.... हिम्मत... साहस....
जो कुछ कर, परमात्मा को पाने के लिए कर। यही तुझे परमात्मा में प्रतिष्ठित पुरूषों तक पहुँचा देगा और तू भी परमात्मा में प्रतिष्ठित हो जायगा।

पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘आत्मयोग’

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