चिदानन्दमय देह तुम्हारी विगत विकार कोई जाने अधिकारी

कई लोग कहते हैं कि 'गुरु तो तत्त्व हैं, गुरु तो चिन्मयवपु हैं।' गुरु तत्त्व हैं तो गुरु का शरीर क्या भूत है?
चिदानन्दमय देह तुम्हारी विगत विकार कोई जाने अधिकारी।
जब सब ब्रह्म है, व्यक्त और अव्यक्त ब्रह्म है, तो उड़िया बाबा की देह अब्रह्म है क्या?
गुरु को केवल तत्त्व मानकर घर में ही प्रणाम कर लेते हैं, गुरु के पास जाना टालते हैं वे लोग अपने आपसे धोखा करते हैं। उनका अहं बचने की कोशिश करता है। गुरु के सामने झुकने में डर लगता है।
'ऐसी कौन सी जगह है जहाँ गुरु नहीं है?' – ऐसा कहकर लोग घर में ही बैठे रहते हैं। वासनाओं को पोषने का यह एक ढंग है। पत्नी के बिस्तर पर जायेंगे लेकिन गुरु के आश्रम में नहीं जायेंगे।
गुरु को केवल तत्त्व मानकर उनकी देह का अनादर करेंगे तो हम निगुरे रह जायेंगे। जिस देह में वह तत्त्व प्रकट होता है वह देह भी चिन्मय आनंदस्वरूप हो जाती है।
समर्थ रामदास का आनंद नामक एक शिष्य था। वे उसको बहुत प्यार करते थे। अन्य शिष्यों को यह देखकर ईर्ष्या होने लगी। वे सोचतेः 'हम भी शिष्य हैं। हम भी गुरुदेव की सेवा करते हैं फिर भी गुरुदेव हमसे ज्यादा प्यार आनन्द को देते हैं।'
एक बार समर्थ रामदास ने एक युक्ति की। अपने पैर में एक कच्चा आम बाँधकर ऊपर कपड़े की पट्टी लगा दी। फिर पीड़ा से चिल्लाने लगेः "पैर में फोड़ा निकला है.... बहुत पीड़ा करता है... आह...! ऊह...!"
कुछ दिनों में आम पक गया और उसका पीला रस बहने लगा। गुरुजी पीड़ा से ज्यादा कराहने लगे। सब शिष्यों को बुलाकर कहाः
"अब फोड़ा पक गया है, फट गया है। उसमें से मवाद निकल रहा है। मैं पीड़ा से मरा जा रहा हूँ। कोई मेरी सेवा करो। यह फोड़ा अपने मुँह से कोई चूस ले तो मिट सकता है।"
सब शिष्य एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। बहाने बना-बनाकर एक-एक करके सब खिसकने लगे। शिष्य आनंद को पता चला। वह तुरन्त आया और गुरुदेव के पैर को अपना मुँह लगाकर फोड़े का मवाद चूसने लगा। गुरुदेव का हृदय भर आया। बोलेः "बस.... आनंद! बस। मेरी पीड़ा चली गई।" मगर आनन्द ने कहाः
"गुरुजी ! अब क्या छोड़ूँ? ऐसा माल मिल रहा है फिर छोड़ूँ कैसे?"
ईर्ष्या करने वाले शिष्यों के चेहरे फीके पड़ गये।
बाहर से फोड़ा दिखते हुए भी भीतर से आम का रस है। ऐसे ही बाहर से फोड़े जैसे दिखनेवाले गुरुदेव के शरीर से आत्मा का रस टपकता है। महावीर के समक्ष बैठने वालों को पता है कि क्या टपकता है महावीर के सान्निध्य में बैठने से। संत कबीर के इर्द-गिर्द बैठनेवालों को पता है, श्रीकृष्ण के साथ खेलनेवाले ग्वालों और गोपियों को पता है कि उनके सान्निध्य में क्या बरसता है।

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