सेवा में प्रेम

पूजा-उपासना का लक्ष्य यदि परमात्म-प्राप्ति नहीं है और पुजारी होकर 300 रूपये की नौकरी करते रहे, मूर्ति की सेवा-पूजा करते रहे तो भी जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मूर्ति की सेवा-पूजा-उपासना में यदि प्रेम है, भावना है, लक्ष्य ईश्वर-प्राप्ति का है तो वह उपासना खण्ड की होते हुए भी हृदय में अखण्ड चैतन्य की धारा का स्वाद दे देगी। मूर्ति में भी अखण्ड चैतन्य की चमक देखते हैं तो जीवन उपासनामय बन जाता है।
पूज्य बापूजी : आश्रम सत्साहित्य  - ‘अलख की ओर’

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