दुश्मन की भी सेवा करो

 सेवा के बदले में दूसरे को दबाने की क्षमता ना चाहो  सेवा करते जाओ | जो तुम्हारा हरीफ़ है उसका हृदय भी जीतो हरीफ़ जिस कारण दुखी है वो कारण हटाते जाओ  तुम्हारा दुश्मन जिन कारणों से दुखी है वे कारण आप हटाते जाओ  दुश्मन की भी सेवा करो फिर देखो वो दुश्मन पर आपकी कैसी विजय होती है  दुश्मन को मार देना ये दुश्मन पर विजय नहीं है  दुश्मन का  गला दबा देना या नीचे गिरा देना ये दुश्मन की विजय नहीं है उसमे  दुश्मनी तो बनी रहेगी  दुश्मन को अगर जीतना है तो दुश्मन जिन कारणों से दुःखी है वे कारण हटाना शुरू करो  ये ऎसी सेवा है महाराज! गजब कर देगी !आपको स्वामी पद पे बिठा देगी। आप विश्वजीत हो जायेंगे

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

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