न सेवा का बदला चाहो और न सेवा का प्रचार चाहो , न सेवा का दिखावा चाहो। आपके हृदय की शांति और समझ सूझबूझ बढाती जाएगी | और आदर्श सेवक हनुमान हो गए इसी ढंग से …आपने को देखने की इच्छा करो। सेवक और मान चाहे,
सेवा के बदले में मान चाहे तो सेवा को बेच रहा है , फेंक रहा है, शरीर का अहंकार पोसने के लिए सेवा को नष्ट कर रहा है। सेवक और मान की इच्छा? सेवा करोगे लोग मान देंगे लेकिन आपको उस मान से कोई फायदा नहीं होता अपितु अहंकार जगने का अवसर आता है। सेवा के बदले में मान न चाहो। सेवा के बदले में भोग न चाहो।
पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“
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