ईश्वर के नाते सेवा करें और उस सेवा में और सुगन्धि लायें कि ईश्वर की नाते सेवा करें और जिसकी भी सेवा करते हैं वो सब ईश्वर की भिन्न भिन्न अभिव्यक्तियाँ
है। आप
जिस किसी व्यक्ति को नीचा दिखाना चाहते हो तो समझो उसके अन्दर बैठे हुए ईश्वर को आप नीचा दिखाना चाहते हो। जिस किसी व्यक्ति की ईर्ष्या करते हो तो समझो व्यापक ईश्वर सब में बैठा है तो ईश्वर की उस अंग की, उस खंड की आप ईर्ष्या करते हो। तो हमारे चित्त में अपना अहंकार पोषने की और दूसरे को नीचा दिखाने की, और सेवा का प्रदर्शन करने की, जो आदत है या कमजोरी है उसको निकालने से हमारी सेवा सेव्य को प्रगट कर देगी।
पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति “
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