ऐसा जो सेवक है उसे तुम संन्यासी समझो

श्री कृष्ण कहते है
अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः।।6.1।।

जो आसक्ति रहित होकर, करने योग्य कर्म करता है ,फल की आकांशा नहीं  सेवा करता है लेकिन वाहवाही की आकांक्षा नहीं  सेवा करता है लेकिन दिखावे की इच्छा नहीं सेवा करता है लेकिन बदले में सेवा चाहता नहीं  सेवा करता है और बदले में मान चाहता नहीं  सेवा करता है लेकिन दूसरों को हीन दिखाकर आप श्रेष्ठ होने की बेवकूफी नहीं करता है ... ऐसा जो सेवक है उसे तुम संन्यासी समझो उसे तुम अर्जुन योगी समझो  

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

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